अल्ट्रासाउंड कैसे होता है पेट का : Ultrasound Kaise Hota Hai In Hindi
अल्ट्रासाउंड कैसे होता है पेट का : Ultrasound Kaise Hota Hai In Hindi -: तो दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल में बताएंगे कि “अल्ट्रासाउंड कैसे होता है पेट का?” अगर आप इस बारे में जानकारी एकत्रित करना चाहते है, तो आप हमारे इस आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़े, ताकि आपके ज्ञान में और भी ज्यादा वृद्धि हो सकें !

अल्ट्रासाउंड क्या हैं?
अल्ट्रासाउंड (Ultrasound) एक तकनीक है जो शरीर के अंदर छठे सूत्रित ध्वनिक तरंगों का उपयोग करती है ताकि विभिन्न अंगों, अंग-संरचनाओं और उत्पादों की छवियां (images) बनाई जा सकें। यह एक मेडिकल डायग्नोस्टिक तकनीक है जिसका उपयोग बहुत सारे उपयोगों में किया जाता है, जैसे कि रोगी की विचारशील अंगों की जांच, गर्भावस्था में बच्चे की जांच, रसोली (tumor) की निदर्शन, दिल और वातावरण अवलोकन आदि।
इस तकनीक में, एक आपूर्ति पदार्थ (transducer) विभिन्न उच्च गुणवत्ता वाले ध्वनिक तरंगों को उत्पन्न करता है और उन्हें शरीर के अंदर भेजता है। जब ये तरंगे विभिन्न अंगों या संरचनाओं से टकराती हैं, तो वे विभिन्न तत्वों पर प्रतिबिंबित होती हैं और यह प्रतिबिंब आपूर्ति पदार्थ द्वारा पकड़ा जाता है। ये पकड़े गए प्रतिबिंब ध्वनिक संकेतों के रूप में प्रदर्शित होते हैं, जिन्हें एक कम्प्यूटर विश्लेषण करके छवियों (images) में परिवर्तित किया जाता है। इस तरीके से, डॉक्टर या तकनीशियन शरीर के अंदर के संरचनाओं को विस्तारपूर्वक जांच सकते हैं और रोगी की आवश्यकताओं के आधार पर उपचार की योजना बना सकते हैं।
अल्ट्रासाउंड एक अस्पष्ट या अविश्वसनीय छवि (image) प्रदान कर सकता है, लेकिन यह अत्यधिक सुरक्षित होता है और रेडिएशन नहीं उत्पन्न करता है, इसलिए यह गर्भावस्था में बच्चे की जांच के लिए बहुत प्राथमिक रूप से उपयोग किया जाता है।
अल्ट्रासाउंड कैसे होता है पेट का?
पेट का अल्ट्रासाउंड (ultrasound) एक आपूर्ति पदार्थ (transducer) के उपयोग से किया जाता है, जो पेट की विभिन्न भागों के दर्शन करने में मदद करता है। यह विधि आवासीय मछली की आवाज ऊर्जा (sound energy) का उपयोग करती है जो पेट के अंदर बाउंस करके तस्वीरों को उत्पन्न करती है।
अल्ट्रासाउंड के दौरान, चिकित्सा कर्मी पेट के ऊपरी हिस्से पर एक जेली या ग्रीसी पदार्थ लगाते हैं, जो मदद करता है कि आपूर्ति पदार्थ और पेट के बीच विद्युत संपर्क स्थापित हो। फिर वे उपकरण को पेट पर धकेलते हैं और उपकरण को पेट की सतह पर धकेलकर हलकी दबाव लागते हैं।
अपनी स्थिति के आधार पर, आपूर्ति पदार्थ उच्च गुणवत्ता वाले ध्वनिक तरंगों को उत्पन्न करता है, जिसे अल्ट्रासाउंड मशीन पकड़ती है। यह मशीन ध्वनि के विद्युतीय प्रतिशतों को स्कैन करती है और उन्हें तस्वीरों में बदलती है। चिकित्सा कर्मी पेट के अलग-अलग भागों को जांचने के लिए यह उपकरण स्थानांतरित किया जाता है ताकि सभी आवश्यक तस्वीरें प्राप्त की जा सकें।
इस प्रक्रिया के दौरान, आपूर्ति पदार्थ द्वारा उत्पन्न होने वाली ध्वनि की तारीख, दिशा, और गहराई के आधार पर चिकित्सा कर्मी पेट के आंतरिक संरचनाओं को विश्लेषित कर सकते हैं। यह आंतरिक संरचनाओं की तस्वीरें बनाने का मतलब है, जिससे चिकित्सक विभिन्न पेटीय अवसाद, गर्भावस्था, अश्वासनीय विकृतियां, या अन्य समस्याओं का पता लगा सकते हैं।
इस प्रक्रिया में न केवल दर्दनाक होता है और न ही किसी नकारात्मक प्रभाव का होने का खतरा होता है। यह एक सुरक्षित और गैर-आवासीय तकनीक है जिसे आमतौर पर डॉक्टर्स द्वारा प्रेस्क्राइब किया जाता है ताकि पेट की समस्याओं की जांच की जा सके।
पूरे पेट का अल्ट्रासाउंड कैसे किया जाता हैं?
पूरे पेट का अल्ट्रासाउंड करने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन किया जाता है:
- प्रिपेरेशन: प्रारंभिक चरण में, रोगी को अल्ट्रासाउंड के लिए तैयार किया जाता है। यह सामान्य रूप से खाली पेट चाहिए, इसलिए रोगी को खाने पीने से कम समय के लिए रखा जाता है। रोगी को आमतौर पर पीले रंग के कपड़ों में बदल दिया जाता है, क्योंकि वे अल्ट्रासाउंड के दौरान बेहतर छवियों का निर्माण करने में मदद कर सकते हैं।
- आपूर्ति पदार्थ की लगाई जेली: अल्ट्रासाउंड के दौरान, आपूर्ति पदार्थ (transducer) को पेट पर धकेलने से पहले एक जेली या ग्रीसी पदार्थ लगाया जाता है। यह मदद करता है कि आपूर्ति पदार्थ और पेट के बीच विद्युत संपर्क स्थापित हो। जेली को धीरे-धीरे लगाया जाता है ताकि उच्च गुणवत्ता वाली छवियां प्राप्त की जा सकें।
- आपूर्ति पदार्थ के संपर्क में आना: चिकित्सा कर्मी आपूर्ति पदार्थ को पेट पर धकेलते हैं और उपकरण को पेट की सतह पर आराम से घुमाते हैं। यहां ध्यान देने वाली बात है कि आपूर्ति पदार्थ को सही स्थान पर स्थित करने के लिए चिकित्सा कर्मी शरीर के अंदर ध्यान से घुसने की आवश्यकता हो सकती है।
- छवियों का उत्पादन: आपूर्ति पदार्थ को पेट पर स्थापित करने के बाद, उपकरण से ध्यान से ध्यान देते हुए ध्वनिक तरंगों का उत्पादन किया जाता है। ये तरंगें अंगों और संरचनाओं के साथ संपर्क करती हैं और प्रतिबिंबों (echoes) को पकड़ती हैं। इसके बाद, कम्प्यूटर इन प्रतिबिंबों का विश्लेषण करता है और उच्च गुणवत्ता वाली छवियां उत्पन्न करता है।
- छवियों का विश्लेषण: उच्च गुणवत्ता वाली छवियां प्राप्त होने के बाद, चिकित्सा कर्मी या रेडियोलॉजिस्ट छवियों का विश्लेषण करता है। यह उनकी प्राथमिकताओं के आधार पर होता है, जैसे कि गर्भावस्था में बच्चे की जांच, अंगों की स्थिति, संरचनाओं की विचारशीलता, या रोगों की निदर्शन। इसके आधार पर, उपचार या निदान की योजना बनाई जा सकती है।
यहीं तकनीक का उपयोग किया जाता है जब पूरे पेट की जांच की आवश्यकता होती है, जैसे कि गर्भावस्था में बच्चे की जांच, अंगों की स्थिति, रसोली की निदर्शन, इत्यादि। आपूर्ति पदार्थ की स्थानांतरण और पेट के विभिन्न हिस्सों के अलावा, अल्ट्रासाउंड का उपयोग आंत, गर्भाशय, प्रोस्टेट ग्रंथि, किडनी, लीवर, गैलब्लैडर, आंख, हृदय, और वातावरणीय संरचनाओं की जांच के लिए भी किया जाता है।
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पूरे पेट का अल्ट्रासाउंड कितने में होता है?
इसके लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। उन्होंने बताया कि एमआरआई और सीटी स्कैन की तुलना में अल्ट्रासाउंड का खर्च 500 रुपये से लेकर 1000 रुपये तक है।
क्या पेट का अल्ट्रासाउंड आंतों को दिखाता है?
एक अल्ट्रासाउंड मशीन उदर क्षेत्र में ध्वनि तरंगें भेजती है और छवियों को कंप्यूटर पर रिकॉर्ड किया जाता है। श्वेत-श्याम छवियां आंतरिक संरचनाओं जैसे परिशिष्ट, आंतों, यकृत, पित्ताशय की थैली, अग्न्याशय, प्लीहा, गुर्दे और मूत्राशय को दिखाती हैं।
पेट की जांच कैसे की जाती है?
एब्डोमिनल स्कैन टेस्ट के दौरान, रोगी एक टेबल पर लेट जाता है जो एक बड़े स्कैनर, कैमरा और कंप्यूटर से जुड़ा होता है। रेडियोधर्मी रसायन को आमतौर पर हाथ की नस में इंजेक्ट किया जाता है। इस रसायन को पूरे शरीर में प्रसारित होने में 30 से 90 मिनट का समय लगता है।